केन्द्र सरकार की भारत की शिक्षा नीति को बदलने के इस प्रयास की मैं सराहना करता हूँ। दसवीं कक्षा से बोर्ड की परीक्षा को हटाने के सुझाव बहुत अच्छा कदम है। जब डिग्री मिलने के बाद भी नौकरी के लिए बच्चो को फ़िर से कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है तो फ़िर आजकल डिग्री के लिए बोर्ड परीक्षा का महत्त्व ही नही रह गया है। दसवी की परीक्षा तो पूर्व काल में महत्वपूर्ण थी जब उसके मार्क्स को देख कर ही नौकरी मिल जाया करती थी।
यहाँ पर मैं शिक्षा मंत्री जी का ध्यान एक और कार्य की तरफ़ आकृष्ट करना चाहता हूँ।
आजकल कई विद्यालय अपने यहाँ २००० -३००० विद्यार्थियों का दसवी कक्षा के लिए नामांकन करते
हैं परन्तु उनके पास इतने बच्चो को शिक्षा देने के लिए उचित शिक्षक नही होते तथा क्लास और जरुरत की सुविधा नही होती हैं। मेरा सरकार से यह निवेदन है की ऐसी संस्थाओ पर ध्यान दें जो बच्चो के जीवन के साथ खिलवाड़ करते हुए अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं।
सरकार को ट्रस्ट तथा खैराती संस्थाओं द्वारा चलाये जाने वाले सभी विद्यालयों को आसानी से सी बी एस ई से नामांकन देना चाहिए। इस से इन संस्थाओं का मनोबल बढेगा तथा समाज के लिए वह कार्य करने में उत्साहित होंगे। जो सरकारी बाबु इन सस्थाओं को सीबीऍसई से मान्यता प्राप्त करवाने हेतु घूसखोरी करते हैं उन सभी पर रोक लगा दी जाए। तथा सरकार यदि ट्रस्ट चालित विद्यालयों को अपने अधिनस्त कर ले तो ऐसा करने से भ्रष्ट शिक्षा माफियों का बोलबाला कम हो सकेगा। सरकार ट्रस्ट को विद्यालय के लिए एक कमिटी बनाने दे परन्तु शिक्षको की तनख्वा , बच्चो की फीस , परीक्षा को कराने का कार्य सब सरकार तय करे।
साथ ही साथ मेरा यह भी कहना है की विद्यालय खोलने हेतु जो यह नियम है की कम से कम २ एकड़ जमीन होनी ही चाहिए इस नियम को शहरो के लिए कम कर देना चाहिए। यह सुझाव इसलिए दे रहा हूँ ताकि हम शिक्षा को कम से कम खर्च में भारत की गरीब से गरीब और अमीर से अमीर जनता तक बिना किसी आर्थिक परेशानी के पहुँचा सके।
किसी भी देश की उन्नत्ति शिक्षा के ही बल से होती है। इसलिए सरकार से मेरा निवेदन है की भारत के कोने कोने में शिक्षा को सरल एवं सस्ता बनाने का प्रयास करे।
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Saturday, June 27, 2009
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