मेरा कहना है की गुलामी का मतलब सिर्फ़ यह नही है की कोई दूसरा देश ही आप पर आ कर राज़ करे, यदि कोई किसी दुसरे राष्ट्र की वेश भूषा, भाषा इत्यादि को अपने देश की भाषा और वेश भूषा पर हावी होने दे तो यह भी एक प्रकार की गुलामी ही है। जो की किसी राष्ट्र के राजनितिक गुलामी से भी अधिक खतरनाक है। इस तरह की गुलामी तो एक देश की संस्कृति को इतिहास बना देती है।
इसका जीता जागता प्रमाण है की पुरानी कई ऐसी सभ्यताएँ हैं जिनकी भाषा को हम भूल चुके हैं जैसे हद्दापन सभ्यता, इन्दुस सभ्यता इत्यादी।
आज विश्व में बहुत से देश हैं जो अपनी भाषा को बचाने के लिए अपने देश के सभी सरकारी कार्य सिर्फ़ अपने ही भाषा में करते हैं। जैसे चीन, जापान, इटली, रशिया इत्यादी। फ़िर क्यों भारत में अंग्रेजो द्वारा पीछे छोड़ दिए गए इस अंग्रेजी भाषा के हम भारतवासी गुलाम बन गए हैं??
मेरा उन सभी वैज्ञानिको तथा ज्ञानियों से यह अनुरोध है की वह अपनी खोज को अपने मात्र भाषा में ही संगठित करे। ऐसा करने से दुसरे देश के लोग उस खोज को जानने के लिए आपकी हिन्दी भाषा को सिखने का प्रयास करेंगे। बिल्कुल उसी तरह जैसे हम भारतियों को पश्चिमी देशो के ज्ञान को जानने के लिए अंग्रेजी सीख कर, उनकी भाषा को महत्वता देना पड़ा।
यदि हम कंप्यूटर तथा सभी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यो को हिन्दी में करें तो भारत में रहने वाले विदेशियों को भी हमारी भाषा सीखनी पड़ेगी। इस प्रकार हिन्दी की महत्वता बढेगी और हमारी संस्कृति लुप्त होने से बच जायेगी।
जब हम भारतवासी जापान जाने से पहले जापानी भाषा सीख कर जाते है, चीन जाने के लिए चीनी भाषा और उनकी संस्कृति जान कर वहां जाते हैं, उसी प्रकार यदि हिन्दी भारत में सरकार की तरफ़ से प्रमुखता पाए तो हमारी भाषा ,जो की सभी भाषाओँ की जननी है देश विदेश में पहचानी जायेगी और भारत को भी पहचान दिलाएगी।
मुझे डर है की जिस प्रकार संस्कृत भाषा आज एक तरह से गुम हो चुकी है कही हिन्दी का भी पश्चमी भाषा के पीछे भागते भागते वही हाल न हो। इसलिए मेरा सरकार से निवेदन है की इस ओर शीग्रता से हिन्दी को बचाने के लिए सम्पूर्ण भारत में नियम लागू करें। हर राज्य में हिन्दी और उस राज्य की क्षेत्रीय भाषा मे ही सभी सरकारी कार्यों को करने का नियम लागू करें।
साथ ही साथ सरकार को सभी राष्ट्रीय कार्यालयों एवं प्राइवेट लिमिटेड सेक्टर्स, विद्यालय, महाविद्यालय या कोई भी सार्वजनिक सेक्टर के कार्यालयों में भारतीय परिधान में ही आना अनिवार्य करना चाहिए। जींस, पेंट , टॉप, सभी प्रकार के पश्चिमी परिधान पहनना इन जगहों पर पुरूष तथा स्त्रियों दोनों के लिए ही निलंबित कर देना चाहिए। जिस प्रकार भारतीय विमान सेवा में कार्यरत महिलाएं साड़ी में ही अपना कार्य करती है, उसी प्रकार सभी विमान सेवाओ को भी भारतीय परिभुषा का पालन करना चाहिए। जिस प्रकार भारतीय सेना में सभी जाती, धर्म के लोग वेशभूषा में एक ही नियम का पालन करते है, भारतीय क्रिकेट टीम जब कही भी खेलने जाती है तो भारत को नीले परिधान से ही पूरे विश्व में प्रस्तुत करती है। उसी प्रकार बाकि के सरकारी कार्यालयों, विद्यालयों, महा विद्यालयों में भी भारतीय परिभुषा को अपनाना एक नियम होना चाहिए।